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वैदिक ज्योतिष में ग्रहों को मजबूत करने के लिए रत्नों का प्रयोग किया जाता है। कुंडली में कमजोर ग्रहों के शुभ प्रभाव को पाने के लिए भी रत्न धारण किए जाते हैं. आइए जानते हैं कि वैदिक ज्योतिष में रत्नों को किस तरह से धारण करना उत्तम माना गया है।
ग्रहों के आधार पर रत्नों को नौ भागों में बांटा गया है। हर एक ग्रह को मजबूती प्रदान करने के लिए एक रत्न निर्धारित किया गया है। सूर्य के लिए माणिक, चंद्रमा के लिए मोती, बुध के लिए पन्ना, मंगल के लिए मूंगा, गुरु के लिए पुखराज, शुक्र के लिए हीरा, शनि के लिए नीलम, राहु के लिए गोमेदऔर केतु के लिए लहसुनिया पहना जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार रत्न राशि अनुसार नहीं बल्कि कुंडली में ग्रहों की स्थिति के अनुसार पहनने चाहिए। कौन-सा रत्न कब पहना जाएं इसके लिए कुंडली का सूक्ष्म विश्लेषण करना जरूरी होता है।
कोई भी ज्योतिष लग्न कुंडली, नवमांश, ग्रहों, दशा-महादशा का अध्ययन करने के बाद ही कोई रत्न धारण करने की सलाह देता है। लग्न कुंडली के अनुसार कारक ग्रहों यानि लग्न, पंचम और नवम भाव के स्वामी के रत्न पहने जा सकते हैं। केंद्र या त्रिकोण के स्वामी की ग्रह महादशा में उस ग्रह का रत्न पहनने से अधिक लाभ मिलता है।
कुंडली के तीसरे, छठे, आठवें और बारहवें भाव के स्वामी ग्रहों के रत्न नहीं पहनने चाहिए। इनको शांत करने के लिए रत्नों के स्थान पर दान और मंत्र जाप का सहारा लेना चाहिए। इसके साथ ही किसी भी लग्न के 3,6,7,8, 12वें भाव के स्वामी के रत्न नहीं पहनने चाहिए।
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